कनकधारा स्तोत्र का फल चमत्कारी व शीघ्र फल देने वाला है। जितने भी महालक्ष्मी प्राप्ति के मंत्र हैं उन में कनकधारा स्तोत्र प्रमुख स्थान रखता है। यह स्तोत्र धन व दरिद्रता सम्बंधी जितने भी दोष हैं उन सबका शमन करने में अत्यधिक सक्षम है। इस स्तोत्र की महिमा के विषय में कहा जाता है कि ये स्वर्ण वर्षा करवाने वाला अदभुत स्तोत्र आदि गुरु शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र द्वारा एक गरीब के घर में धन वर्षा करवाई थी। इस विषय में एक कथा प्रसिद्ध है कि एक बार जगदगुरु शंकराचार्य भिक्षा के लिये एक दरिद्र के घर पहुंचे, उस घर में एक वृद्ध स्त्री रहती थी, वृद्धा ने भिक्षा के लिये आये शंकराचार्य को एक सूखा आंवला दिया और बडे ही करुण स्वर में बोली बेटा मेरे काफी ढूंढने पर भी मुझे सिर्फ यह सूखा आंवला ही मिला इसे ग्रहण करो।शंकराचार्य ने उस वृद्ध स्त्री की स्थिति देखी तो रो उठे उन्होंंने तत्काल माता महालक्ष्मी का आवाह्न किया आवाह्न करने पर माता महालक्ष्मी प्रकट हुई और कहा शंकर में इसकी दरिद्रता दूर नहींं कर सकती। इसके भाग्य में धन नही है, इसके कर्म ही इसकी दरिद्रता का कारण हैं, यह कहकर महालक्ष्मी अंतर्ध्यान हो गईंं। लेकिन शंकराचार्य उस वृद्धा की दरिद्रता दूर करने के लिये संकल्पबद्ध थे। उन्होने तुरंत विह्ल भाव से कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना आरम्भ कर दिया।18 श्लोक के इस स्तोत्र का पाठ करते-करते शंकराचार्य जी के अश्रु किसी झरने की तरह बहने लगे। जैसे ही स्तोत्र का खत्म हुआ तुरंत वहां स्वर्ण की वर्षा होने लगी। तब माता महालक्ष्मी पुन: प्रकट हुईंं और बोली शंकर तुमने इस स्तोत्र का निमार्ण कर जगत का कल्याण किया है। इस कनकधारा स्तोत्र का जो भी भक्ति भाव से पाठ करेगा उसके कुल में धन का अभाव कभी नही होगा।
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