शनिवार, 3 सितंबर 2016

किस दिन के चंद्र दर्शन से लगता है झूठा कलंक और कैसे मिलेगी आपको इससे मुक्ति जानिए यह उपाय

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि  को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है।   इस दिन चंद्रमा के दर्शन पूर्ण रूप से वर्जित हैं और यही दिन गणेश जी का जन्मदिन भी होता है। इसी दिन से भगवान विनायक का जन्मोत्सव भी शुरू होता है। लेकिन एक तरफ उत्सव और दूसरी तरफ कलंक बात समझ में नहीं आती।

ऐसा क्या कारण है  क्यों न करें चन्द्र दर्शन जबकि रोज चन्द्रमा देख सकते हैं देखते भी हैं। तो फिर भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को धूमधाम से गणेश जी की पूजा तो होगी लेकिन चन्द्र दर्शन नहीं। जबकि चंद्रमा गजानन के पिता शिवजी के मस्तक पर विराजमान हैं। आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि भाद्रपद की गणेश चतुर्थी के दिन क्यों चन्द्र दर्शन नहीं करना चाहिए और अगर चांद दिख ही जाए तो क्या करना चाहिए। मोटेतौर पर कहेंगे कि ऐसी शास्त्रीय मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन से मनुष्य को निश्चय ही झूठा कलंक लगता है। कलंक भी ऐसा कि भाई-भाई में बैर करा दे  पिता-पुत्र को बैरी बना दे, मा-बेटे में विभेद करा दे, भाई-बहन में रार छिड़ जाए और सब कुछ गड़बड़ हो जाए।

गणेश ने दिया था चंद्रमा को श्राप-

भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान हो रहा था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहा है। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि- आज से तुम काले हो जाओ। अब चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण होओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। लेकिन आज का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति आज यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।

भगवान श्रीकृष्ण पर भी लगा था चोरी का झूठा आरोप-

सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती। किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित शिकार खेलने जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी। लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जामवन्त ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए। वहां श्रीकृष्ण का जामवन्त से युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण के राम के रूप में दर्शन देकर जामवन्त के शक का निवारण किया तब जामवन्त ने मणि श्रीकृष्ण को दी। और श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर लगे आरोप का परिहार मणि लौटा कर किया।

तब नहीं लगेगा दोष

ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण के इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता।

चंद्र दर्शन होने पर करना चाहिए इस मन्त्र का जाप-

सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।

सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक:।।

इस मंत्र के प्रभाव से कलंक नहीं लगता है।

जो मनुष्य झूठे आरोप-प्रत्यारोप में फंस जाए, वह इस मंत्र को जपकर आरोप मुक्त हो सकता है।

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!

गणपती बाप्पा मोरया !! !! मंगलमुर्ती मोरया

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन कैलाश पर ब्रह्म देव महादेव के दर्शन के लिए गए तभी वहां देवर्षि नारद ने प्रकट होकर अतिस्वादिष्ट फल भगवान शंकर को अर्पित किया। तभी कार्तिकेय व गणेश दोनों महादेव से उस फल की मांग करने लगे। तब ब्रह्म देव ने महादेव को परामर्श देते हुए कहा के फल को छोटे षडानन अर्थात कार्तिकेय को दे दें। अत: महादेव ने वह फल कार्तिकेय को दे दिया। इससे गजानन ब्रह्म देव पर कुपित होकर उनकी सृष्टि रचना के कार्य में विध्न ड़ालने लगे। गणपति के उग्र रूप के कारण ब्रह्म देव भयभीत हो गए। इस दृश्य को देखकर चंद्र देव हंस पड़े। चंद्रमा की हंसी सुन कर गणेश जी क्रोधित हो उठे तथा उन्होंने चंद्र को श्राप दे दिया। श्राप के अनुसार चंद्र देव किसी को देखने के योग्य नहीं रहे तथा किसी द्वारा देखे जाने पर वह व्यक्ति पाप का भागी हो जाता। श्रापित चंद्र ने बारह वर्ष तक गणेश जी का तप किया जिससे गणपति जी ने प्रसन्न होकर चंद्र देव के श्राप को मंद कर दिया तथा मंद श्राप के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी जो व्यक्ति चंद्रमा को देखता है, वह निश्चय ही अभिशाप का भागी होता है तथा उस पर मिथ्यारोपण लगते हैं।

भगवान श्री कृष्ण पर द्वारकापुरी में सूर्य भक्त सत्राजित ने स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगाया था। स्वयं श्रीकृष्ण ने भागवत में इसे “मिथ्याभिशाप” कहकर मिथ्या कलंक का ही संकेत दिया था। देवर्षि नारद ने भी श्रीकृष्ण को भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र दर्शन करने के फलस्वरूप व्यर्थ कलंक लगने की बात कही थी। नारद पुराण के अनुसार ये श्लोक इस प्रकार है – “त्वया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चन्द्रदर्शनम्। कृतं येनेह भगवन्! वृथा शापमवाप्तवान्”।

स्कंदपुराण में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि भादव के शुक्लपक्ष के चंद्र दर्शन मैंने गोखुर के जल में किया जिसके फलस्वरूप मुझ पर मणि की चोरी का कलंक लगा “मया भाद्रपदे शुक्लचतुर्थ्यां चंद्रदर्शनं गोष्पदाम्बुनि वै राजन् कृतं दिवमपश्यता”।

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रदर्शन से कलंक लगने के शमन हेतु विष्णुपुराण में वर्णित स्यमंतक मणि का उल्लेख है जिसके सुनने या पढऩे से यह दोष समाप्त होता है।

एक समय देवताओं  ने एक सभा का आयोजन किया ।उसमे सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया था ।सभी देवगण समय से सभा में पहुच गए ,लेकिन गणेशजी अभी तक नहीं पहुचे थे । उनका इंतजार हो रहा था, कि गणेशजी दोड़ते-दोड़ते सभा में पहुचे क्योकि एक तो उनकी सवारी एक बेचारा छोटा सा चूहा और गणेशजी इतने भारी भरकम  गणेशजी जी की यह दशा देखकर चंद्रमा को हँसी आ गई ।इस पर गणेशजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया “कि आज से जी भी तुम्हें देखेगा उस पर चोरी का इल्जाम लगेगा ।अब ये सब सुनकर सारे देवता हैरान रह गये की ऐसा कैसे हो सकता है चंद्रमा तो रोज रात में उदय होता है और रोज सब लोग इसे देखेगे तब तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी ।

अब सभी देवताओ ने मिलकर गणेशजी से प्रार्थना की “कि प्रभु अगर ऐसा हुआ तो चंद्रमा कभी उदय नहीं होगा और यदि उदय हुआ तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी । जब गणेशजी का गुस्सा शांत हुआ तो वे बोले “कि श्राप तो वापस नहीं हो सकता लेकिन मैं इसे कम कर सकता हूँ ।भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मेरा जन्म दिन आता है उस दिन जो चंद्रमा को देखेगा उसे कलंक जरूर लगेगा “।

देवताओं ने कहा ठीक है फिर पूछा “कि इससे बचने का कोई उपाय है प्रभु “।तब गणेशजी बोले “कि मेरी जन्म तिथि से पहले जो दूज तिथि आती है उस दिन चाँद के दर्शन कर लेगा उस पर इस श्राप का असर नहीं पड़ेगा “। इस प्रकार गणेशजी के श्राप की वजह से ही गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना जाता है ।

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