सावन मास और साधना के बीच मन की एकाग्रता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति नहीं होती। व्यक्ति का मन बहुत ही चंचल और चलायमान होता है। जब व्यक्ति साधना चक्र में प्रवेश करता है तब मन विकराल बाधा के रूप में सामने आता है। मन को नियंत्रित करना आसान नहीं होता। व्यक्ति का मन ही मोक्ष और बंधक का मूल कारण होता है। अतः मन से ही मुक्ति और मन से ही बंधन का कारण है।
भगवान शंकर ने मन के कारक चंद्रमा को अपने मस्तक में धारण किया है जिससे साधक की साधना में कोई भी समस्या ना आये और वह आसानी से पूरी हो जाये। सावन में हम आपको यह बताने का प्रयास कर रहे है की शिव के मतंगेश्वर स्वरूप के बारे में तथा माँ शक्ति मातंगी के बारे में। माँ मातंगी महाविद्या के नवे स्थान पर है। माता मातंगी श्याम वर्ण और चंद्रमा को मस्तक पर धारण करती है। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति है। माँ की चार भुजाएं चार वेद का रूप है। मतंग ऋषि की पुत्री थी माता मातंगी। मतंग ऋषि परम् शिव भक्त थे और माता ने शिव साधना कर शिव के मतंगेश्वर स्वरूप की प्राप्ति की -
मंगलवार के दिन घर पर एक पारद शिवलिंग लाकर या शिव मंदिर जाकर शिव परिवार का पंचोपचार पूजन करें। हो सके लाल कम्बल के आसन का प्रयोग करें। चमेली के तेल का प्रयोग दीपक जलाने में करें। गूगल की धूप दें एवं सिंदूर चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं। लाल कनेर का फूल अर्पित करें। शिवलिंग पर सिंदूर का तिलक करें। पूजा करने के बाद बायें हाथ में जायफल लेकर दाएं हाथ में इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से १०८ बार जप करें।
मंत्र यह है -
ॐ हीं क्लीं हूं मातंग्ये महासारस्वतप्रदाय मतंगेश्वर नमः शिवाय।
मंत्र जाप के बाद शिवलिंग की आरती करें तथा जायफर को घर की तिजोरी में स्थापित करें। इस उपाय द्वारा आपको सफलता और सुख -सम्रद्धि की प्राप्ति होगी और तिजोरी हमेशा पैसो से भरी रहेगी। जिससे आपके
जीवन का कोई भी क्षेत्र खाली अथवा शेष नहीं रहेगा।
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